मुझे आज भी याद है वो मंज़र, जब तिरंगे में लिपटा एक शहीद का शव उसके गाँव-उसके घर पहुँचा था। एक बेटा करगिल युद्ध में देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर लौटा था। बेटे के शव को देखकर उस माँ का कलेजा मुंह को आ गया था। ख़ुद को सँभालने की असफल कोशिश कर रहे पिता की आँखें भी डबडबा गई थीं। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि अभी कल तक उनकी उंगलियाँ पकड़ कर चलने वाला उनका लाडला बड़ा हो गया था। इतना बड़ा कि देश के लिए शहीद हो गया। ये मंज़र सिर्फ़ इस एक परिवार को धैर्य खोने पर मजबूर नहीं कर रहा था, बल्कि उन बूढ़े माता-पिता के आँसुओं की नमी को देश के करोड़ों लोगों ने महसूसा, जो टीवी पर शहादत की खबरों को देख-सुन रहे थे। ऐसे ही नाज़ुक पलों का सामना उन 527 परिवारों को भी करना पड़ा, जिनके सपूतों ने हड्डियाँ गला देने वाली ठण्ड और शून्य से भी कम तापमान में दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे। और अपनी जान की कीमत पर 26 जुलाई 1999 को करगिल को दुश्मनों के चंगुल से मुक्त कराया। करगिल युद्ध में अपनी जीत के आज दस साल हो गए हैं। पूरा देश आज 'विजय दिवस' मना रहा है। हमारे नेता उन शहीदों की शहादत पर गर्व जता रहे हैं। लेकिन क्या किसी को उन रणबांकुरों के परिवार वालों के दुख-दर्द की फ़िक्र है- जिन्होने अपना बेटा, अपना पति और अपने पिता को खोया है ? जिनके घर में आज भी एक ख़ालीपन, एक खौफनाक सन्नाटा पसरा रहता है ? जिनके घरवाले आज ज़िंदगी के तमाम कड़वे 'सच का सामना' कर रहे हैं ? शायद नहीं...! इन परिवारों को पेट्रोल पंप से लेकर तमाम चीज़ें देने का वादा किया गया। लेकिन वादा निभाने को तो छोड़िए, किसी सरकारी नुमाइंदे को आज इनसे ये पूछने तक की फ़ुर्सत नहीं कि उनके घर में रोटी है या नहीं ? उल्टा कुछ एक मामलों में तो ये हुक्मरान ये कह कर इनका दिल दुखा गये कि करगिल युद्ध उनकी पार्टी की सरकार रहते तो हुआ नहीं, तो भला वो क्यों इनका दुख बाँटे ! एक और सच है जिसका हम सामना कर रहे हैं। और वो यह कि आख़िर हमने करगिल से क्या सबक लिया ? करगिल युद्ध में हमारी सेना ने कम संसाधनों और मुश्किल हालात में दुश्मनों के दाँत खट्टे कर दिए थे। लेकिन दस साल बीतने के बाद भी स्थितियाँ जस की तस है। संसाधनों की कमी आज भी बरकरार है। ये सच है कि कोई भी लड़ाई हौसले और विश्वास से जीती जाती है, लेकिन क्या संसाधनों की ज़रूरत को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है ? ऐसे तमाम सच है जिनका सामना हमें करना ही होगा...!
Sunday, July 26, 2009
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3 comments:
शर्म की बात है NETAON के लिए जो भूल CHUKE हैं VEERON की KURBAANI को..........MANAN है देश के amar VEERON को JINHONE अपनी जान दे कर SABKO CHAIN की NEEND SONE दिया..............
सही कह रहे हैं.
अमर शहीदों को नमन.
jai hind.............
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