Friday, July 17, 2009

नेताओं से एक सवाल- नवाबों के ही शहर में तहजीब से तौबा...???

आजकल के राजनेता दूध के धुले नहीं हैं। जनता ये बात बखूबी जानती और समझती है। मेरा भी इरादा राजनीति की दिशा-दशा पर चर्चा करना नहीं है। लेकिन एक अहम सवाल जेहन में बार-बार गूँजता है। नवाबों के शहर में तहज़ीब से तौबा...??? आख़िर उत्तर प्रदेश के राजनेताओं को हो क्या गया है ? क्या वो ये भूल गये हैं कि यह वो प्रदेश है, जहाँ के राजनेताओं और बुद्धिजीवियों ने सहिष्णुता और संवेदनशीलता की मिसाल कायम की है। ऐसे में इस प्रदेश की राजधानी लखनऊ का एक पुराना किस्सा याद आता है। इस शहर के बारे में कहा जाता है कि जब यहाँ दो लोगों के बीच दूरियाँ पैदा हो जाती थी, तो वो आपस में 'तुम' की बजाय 'आप-आप' कहकर बातें करने लगते थे। लेकिन इसे इस शहर का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज इस शहर में ऐसे लोगों की चलती है, जो 'तुम', 'आप' तो छोड़िए, ओछेपन पर उतर आते हैं और व्यक्तिगत स्तर पर टिप्पणी करने लगते हैं। इलाहाबाद विश्विद्यालय की रीडर रहीं कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने अपने मुरादाबाद के भाषण में मायावती को जो कुछ कहा, वो इसी ओछेपन को दर्शाता है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मायावती दूध की धुली हैं। पूर्व में ऐसे ही एक मामले में माया मेमसाहब ने भी मुलायम सिंह पर कुछ ऐसी ही टिप्पणी की थी। लेकिन फिलहाल सियासत का डंडा तो माया मैडम के हाथ में है, इसलिए रीता जी को अपनी कथनी का परिणाम भुगतना ही होगा।

3 comments:

Udan Tashtari said...

पूरा का पूरा घटनाक्रम ही अफसोसजनक, शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है.

sunil kaithwas said...

tahjeeb se jab bhi log tauba karenge yahi hashra hoga thoda hai lekin hai bahut gambheer........

Sandeep Singh said...

ना तो रीता जी भावातिरेक में थीं और ना ही उन्हें मजलूमों की पीर साल रही थी। हां बहिन जी के मुआवजे के मरहम पर रीता जी की टिप्पड़ी ने राहुल बाबा के किए धरे पर पानी जरूर फेर दिया है। एक बार जो कांग्रेस के प्रति दलित संवेदनशीलता पनपती दिख रही थी उसका रुख फिर माया मोहपाश में बंध गया है।