टीवी न्यूज़ चैनल में आजकल खाने की चीज़ों में मिलावट की खबरों का दौर है। कभी सब्जी, कभी दाल, कभी मसाले, तो कभी दूध में मिलावट की खबरें देखने को मिलती है। इन सब मिलावटों के बीच एक और मिलावट है जहाँ हम सब का ध्यान ही नहीं जाता। ऐसी मिलावट जो रोज़ होती है और उस मिलावट को हम सभी बड़ी आसानी से पचा जाते हैं और डकार भी नहीं लेते। सच मानिये, मैं कोई पहेली नहीं बुझा रहा हूँ। मैं तो उस "मिलावट" की ओर इशारा कर रहा हूँ जो खबरों के साथ हो रही है। वो "मिलावट" जो कई खबरिया चैनल धड़ल्ले से रोजाना कर रहे हैं और बेचारा दर्शक चुपचाप उसे बर्दाश्त कर रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में एक सेमिनार के दौरान भी यही मुद्दा सामने आया, जब आउटलुक पत्रिका के संपादक नीलाभ ने कुछ मीडिया संस्थानों पर उंगली उठाई। उनका कहना था कि जैसे कोई भी धंधा एक कानून के दायरे में आता है, एक रेगुलेशन के तहत गवर्न होता है, वैसा ही खबरों के साथ क्यों नहीं ? अगर आप तेल बेच रहे हैं तो सिर्फ़ तेल ही बेच सकते हैं, उसमें चर्बी की मिलावट की तो अपराध होगा और सज़ा मिलेगी। ऐसा कुछ खबरों के "व्यापार" के साथ क्यों नहीं होता ? अगर आप ख़बर छाप या दिखा रहे हैं तो सिर्फ़ ख़बर छापिये और दिखाइए, उसमें मिलावट मत करिए। कोई कुछ कहे या कोई भी तर्क दे, बात सौ फीसदी सही और खरी है। आख़िर खबरों में ये "मिलावट" कब तक होगी ? कब तक हम खबरों के नाम पर आलतू-फालतू की चीज़ों को देखते-सुनते और पढ़ते रहेंगे ?
Sunday, July 12, 2009
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2 comments:
प्रश्न उठाया आपने बिल्कुल यहाँ सटीक।
जनता ही सर्वोच्च वही करेगी ठीक।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सुमन जी, आप का कहना तो ठीक है. लेकिन दुख इसी बात का है कि जनता सर्वोच्च होते हुए भी कुछ नहीं कर रही. ऐसे प्रोग्राम को अगर वो नकार दे तो मजबूर टीवी पत्रकारों को भी रहट मिले और जनता को भी.
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