२० जुलाई की सुबह जब कंप्यूटर खोलते ही आदतन ब्लॉगवाणी पर पहुँचा। तमाम चिट्ठों के बीच बी एस पाबला साहब के ब्लॉग 'प्रिंट मीडिया पर ब्लॉग चर्चा' की एक पोस्ट पर पड़ी। लिखा था- "हरिभूमि में सीधी खरी बात, विस्फोट, संवेदनाओं के पंख तथा बहरहाल की बातें।" सच बताऊँ तो "बहरहाल" शब्द देखकर मैं ठिठक गया। सोचा- क्या इस नाम से कोई और भी लिखता है क्या ? मैंने फटाफट पाबला साहब की पूरी पोस्ट पढ़ी, तो माजरा समझ में आया। दरअसल, हिन्दी समाचार दैनिक 'हरिभूमि' में मेरे ब्लॉग पर लिखे गए एक चिट्ठे को जगह दी गई थी। उस पोस्ट को बाकायदे मेरे और मेरे ब्लॉग के नाम सहित अखबार के सम्पादकीय पृष्ठ पर छापा गया था। देखकर अच्छा लगा। अच्छा इसलिए कि अख़बार छोड़ने के सालों बाद अखबार के पन्ने पर अपना नाम देख रहा था। हालाँकि टीवी न्यूज़ में आने के बाद भी अख़बार के कई वरिष्ठ साथियों ने गाहे-बगाहे कुछ लिखते रहने का कई बार सुझाव भी दिया। लेकिन इसे टीवी इंडस्ट्री की व्यस्तता कहिये या फिर मेरा आलस्य, मैंने बीते दो-तीन सालों में कम से कम अखबार के लिए तो कुछ नहीं लिखा। हाँ, जब अखबार में अपना नाम एक बार फिर देखा तो सुखद अनुभूति हुई। सच बताऊँ, अखबार में कोई ५-६ बरस काम करने और इस दौरान सैकड़ों बाईलाइन छपने के बाद भी अपना नाम देखकर अच्छा लगता है (अब आप चाहे इसे छपास का रोग कहें या कुछ और, आपकी श्रद्धा है) । एक बात और। जो बहुत अहम् है। मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की हुई कि कम से कम ब्लॉगर साथियों के बीच मेरा ब्लॉग नोटिस किया गया। इसके लिए सभी ब्लॉगर साथियों और पाठकों को शुक्रिया। आख़िर में 'हरिभूमि' के सम्पादकीय पृष्ठ के प्रभारी को भी शुक्रिया। उन्होंने २० जुलाई के अपने अंक में सम्पादकीय पृष्ठ पर मेरे ब्लॉग के साथ मेरा नाम छापकर आख़िरकार मुझे 'पक्का' ब्लॉगर बना ही दिया...!
Tuesday, July 21, 2009
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1 comment:
छोरा गंगा किनारे वाला :)
जय हो
वीनस केसरी
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