Tuesday, August 5, 2008
क्या सपने बुन पाएगी निकिता...?
Sunday, July 13, 2008
"इत्तफाकन खुशनसीब हूँ"
आज कल एक चलन सा हो गया है। टीवी न्यूज़ चैनलों को आड़े हाथों लेने का। ब्लॉग की दुनिया में हर शख्स जैसे इस बहती नदी में हाथ धो लेना चाहता है। तमाम तर्क-कुतर्क सामने आते हैं। नोएडा के बहुचर्चित आरुषि प्रकरण पर भी कुछ ऐसा ही हुआ। पर इन सब के बीच कभी-कभी कुछ सार्थक बातें भी सामने आती हैं। सुबह-सुबह भाई हर्षवर्धन का ब्लॉग खोला तो उनकी बात जंच गई। पहले हर्षवर्धन के लिखे उस चिट्ठे का मजमून आपके समक्ष रख दूँ -
"मैं विनती करता हूं। मैं खुद मीडिया में हूं। बस इतना ही कहना चाहता हूं कि देश के लोगों के दिमाग में इतनी फंतासियां मत भरो कि हर रिश्ते में उन्हें पाप दिखने लगे। हर रिश्ते में शक घुस जाए। लोगों को घर भी महानगरों की रात में तेज रफ्तार से कार चलाते-गली के किनारे आंखें चढ़ाए बैठे नशेड़ियों के बीच की जगह लगने लगे। मैं ईमानदारी से कह रहा हूं मुझमें आरुषि की असामयिक-दर्दनाक-समाज पर लगे काले धब्बे वाली मौत पर कुछ भी लिखने का साहस नहीं था। लेकिन, ऑफिस से लौटने के बाद सभी चैनलों पर फिर से जनाजा बिकते देखा तो, रहा नहीं गया। माफ कीजिएगा ... "
"मैं खुद एक टीवी चैनल में हूं इत्तफाकन खुशनसीब हूं कि इस ईमान बेचने के धंधे से काफी बचा हुआ हूं। बिजनेस चैनल में होने से बच गया हूं। "
दरअसल, हर्षवर्धन ने जो कुछ लिखा उसमे न तो कुछ नया था और न ही कुछ बहुत खास ( उनकी लेखनी पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, निश्चित रूप से वो चंद अच्छे लिखाड़ों की श्रेणी में आते हैं), पर जो चीज़ दिल को छू गई वो है उनकी साफ़गोई। हर्ष ने साफ़ तौर पर माना कि "इत्तफाकन खुशनसीब हूँ" , जो प्रशंसनीय है। जिसमे कहीं भी पूर्वाग्रह नहीं झलकता। बहरहाल, मीडिया के कई लोगों को उनकी यह पोस्ट शायद कचोट सकती है, पर संवेदनाओं की इस सहज अभिव्यक्ति के लिए हर्ष जी को बधाई और साधुवाद।
Saturday, July 12, 2008
गुस्से में पूछा, किस टीवी चैनल से हो...?
Tuesday, June 17, 2008
प्रताप जी को दक्षिण अफ्रीका यात्रा के लिए शुभकामनाएँ...
मित्रों के बीच... मैं भी
मित्रों,
कुछ लिखते रहने की इच्छा, कई ब्लॉगर साथियों की प्रेरणा और मन में निरंतर उमड़ते- घुमडते अपने विचारों को कलमबद्ध करने की इच्छा बलवती हुई, तो एक ब्लॉग शुरू करने का मन बना डाला। कई दिनों की कोताही, कुछ नया न लिख पाने की विवशता और चैनल की आपाधापी ने इस कार्य में यथासंभव बाधा भी डाली. पर जो सोचा था, वो तो करना ही था. बहरहाल, मैं आप सब के बीच हूँ और मेरा ब्लॉग आपके सामने है... शुभाषीश और यथोचित सहयोग का आकांक्षी हूँ और रहूँगा...।