Saturday, July 12, 2008

गुस्से में पूछा, किस टीवी चैनल से हो...?


आख़िर 50 दिन लंबी रात की सुबह हो ही गई। आरूषि के पिता डॉक्टर राजेश तलवार जेल से छूट गए। ग़ाज़ियाबाद की डासना जेल से रिहा होते ही राजेश जैसे ही बाहर आए, पत्नी नूपुर के गले लग गए। सब्र का बाँध ढह गया और दोनों इस कदर टूट कर रोए कि उन आँसुओं की नमी टीवी के हज़ारों दर्शकों की आँखों को भिगो गई। डासना जेल से कई मील दूर टीवी चैनलों के न्यूज़रूम तक में उस नमी को महसूसा गया। दर्शकों की बात करें तो हर आमो-खास की ज़ुबान पर बस यही बात थी- बहुत झेला बेचारे राजेश ने। कोई पुलिस को कोस रहा था... तो कोई टीवी चैनल को। "आख़िर डॉक्टर राजेश की क्या ग़लती थी ?"... "राजेश ही क्यों बने सभी का निशाना?" तमाम प्रश्न मुँह बाए खड़े थे। शायद यही मनोदशा उस शख्स की भी थी... वही शख्स जो हर मोड़ पर तलवार परिवार के साथ पूरी मजबूती के साथ खड़ा था। वही शख्स जो पुलिस, सीबीआई और कोर्ट से लेकर मीडिया तक के तमाम ऊटपटाँग सवालों के आगे बेबस खड़ा था। तमाम ज़बरदस्त आरोप उसके दिल-दिमाग़ को छलनी किए जा रहे थे। जी हां, प्रफुल्ल दुर्रानी। वही प्रफुल्ल दुर्रानी, जो इतने दिनों बाद बरसे तो मीडिया उनके निशाने पर था। और मीडिया से उनकी नाराज़गी खुलकर सामने आ गयी। राजेश की ज़मानत की खबर पर रिएक्शन लेने गए रिपोर्टर्स पर वो बरस पड़े। वो एक-एक रिपोर्टर से पूछ रहे थे- यू आर फ्रॉम व्हिच चैनल ?...एंड यू आर फ्रॉम ?... सॉरी, आई डोंट वान्ट टू टॉक टू यू... वेरी बैड चैनल... वग़ैरह-वग़ैरह। वो ज़्यादातर चैनलों से खफा थे। रिपोर्टर्स को यह बात शायद नागवार गुज़री हो पर हर सब्र का बाँध कभी न कभी तो टूटता ही है...!

1 comment:

Sandeep Singh said...

कहा सुना और लिखा माफ....भाई जी दुर्रानी जी कितना भी चैनल वालों पर गुर्राएं लेकिन अभी भी सीबीआई की थ्योरी गले नहीं उतर रही है।...आबरू की मिन्नत और ज़िंदगी की चीखों पर उस रात एयरकंडीसनर की आवाज भारी पड़ गई वो भी मां-बाप के कानों को, हजम नहीं होता भाई....।